AHSEC Class 12 Hindi (Mil) Notes
☆CHAPTER: 6☆
कवितावली (उत्तर कांड से)
काव्य खंड
कवि परिचय: गोस्वामी तुलसीदास के जन्म तिथि और स्थान है। में मतभेद रामकाव्य के प्रमुख कवि तुलसीदास का जन्म सन् १५३२ ई० में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। गोस्वामी जी के पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। | गोस्वामी जी का बाल्यकाल अत्यन्त विषम परिस्थितियों में व्यतीत हुआ था। माता-पिता के द्वारा छोड़ दिये जाने पर बाबा नरहरिदास ने इनका पालन-पोषण किया और ज्ञान भक्ति की शिक्षा-दीक्षा भी दी। इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था। गोस्वामी जी को भक्तिभावना मूलतः लोकसंग्रह की भावना से अभिप्रेरित हैं। तुलसीदास की लोक व शास्त्र दोनों में गहरी पैठ है तथा जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की उन्हें अचूक समझ है। और यही विशेषता उन्हें महाकवि बनाती हैं। तुलसी ने साहित्य में दो भाषाओं तथा उनमें प्रचलित प्रायः सभी | काव्य रूपों का प्रयोग किया। उनकी मृत्यु सन् १६२३ में काशी में हुआ।
तुलसीदास
उनकी प्रमुख रचनाएँ: तुलसी की काव्य यात्रा को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है प्रारंभिक रचनाओं से मानस तक और मानसोत्तर पार्वती मंगल आदि से हनुमान बाहुक तक। पहले भाग में वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न, रामलला नहछू जानकी मंगल और रामचरित मानस आते है तो दूसरे में पार्वती मंगल, कृष्णगीतावली, गीतावली, विनयपत्रिका, दोहावली, बरवै रामायण, कवितावली और हनुमान बाहुक । इनमें से मुख्य है मानस, विनयपत्रिका और कवितावली ।
प्रश्नोत्तर
1. भ्रातशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति के रुप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तरः भ्रातशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नरलीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति कहा हैं। मैं भी इससे सहमत हूँ क्योंकि श्रीराम तो सर्वज्ञाता हैं, अन्तयामी हैं, भगवान हैं। जो दूसरों के कष्टों को हर लेता है, दुखो से मुक्ति दिलाता हैं। परन्तु आज मूर्च्छित भाई को देख वे साधारण मनुष्य जैसे विलखने लगते हैं। उनकी आँखो से अश्रूधारा प्रवाहित होने लगते हैं। श्रीराम अद्वितीय तथा अखण्ड हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने भ्रातशोक में साधारण मनुष्य की दशा दिखलायी हैं।
2. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच बीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तरः राम अपने मूर्च्छित भाई को देखकर प्रलाप कर रहे थे। तरह-तरह के विचार उन्हें व्याकुल कर रहे थे। इस शोकग्रस्त माहौल में हनुमान का अवतरण करुण रस में बीर रस का अविर्भाव है। क्योंकि लक्ष्मण जी केवल संजीवनी बुटी से ठीक हो सकते थे, और हनुमान वहीं बुटी लेकर आये। यह देखकर राम बहुत हर्षित हुए।
3. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई ।।
बरु अपजस सहते जग माहीं। नारि हानि विसेष छति नाहीं।।
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर: आदिकाल से ही पुरुष प्रधान समाज में स्त्रीयों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण पक्षपाती रहा है। स्त्रीयों पर ही हमेशा दोषारोपन किया जाता रहा हैं। यहाँ तक की भगवान श्रीराम ने भी भाई के मूर्च्छित होने पर इस बात को सोचकर ज्यादा परेशान हो रहे थे, कि अवध जाकर क्या मुँह दिखायेगें। लोग उनके विषय में यही कहेंगे कि नारी के लिए उन्होंने अपने भाई को खो दिया। वे कहते हैं कि वे इस बदनामी को सह लेते कि उनमें कोई वीरता नहीं है, जो स्त्री को न बचा सके। लेकिन स्त्री के लिए भाई को खोने का अपयश वह सहन नहीं कर पायेगें।
4. तुलसीदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तरः तुलसीदास का जन्म सन् १५३२, बादाँ (उत्तर-प्रदेश) के राजापुर गाँव में हुआ था।
5. तुलसीदास किस काव्यधारा के कवि हैं?
उत्तर: तुलसीदास सगुण काव्य धारा में रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि हैं।
6. “लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप” कहाँ से गृहित की गई हैं?
उत्तरः रामचरित मानस के लकांकाण्ड से गृहीत की गई हैं।
7. तुलसीदास के दो प्रमुख रचनाओं के नाम लिखो।
उत्तरः दो प्रमुख रचना रामचरितमानस, विनयपत्रिका।
8. तुलसीदास ने लोगों के ऊँचे-नीचे तथा धर्म-अधर्म करने के पीछे क्या कारण बताया है?
उत्तरः कवि के अनुसार पेट के लिए ही लोग ऊंचे-नीचे, तथा धर्म अधर्म करते है।
9. कवि ने ‘पेट की आग बुझाने का क्या उपाय बताया हैं?
उत्तरः कवि के अनुसार पेट की आग’ राम रूपी घनश्याम ही बुझा सकता है।
10. पवनकुमार किसे कहा जाता हैं?
उत्तरः हनुमान को पवनकुमार कहा जाता है।
11. राम ने हनुमान को हृदय से क्यों लगा लिया?
उत्तर: हनुमान जब संजीवनी बुटी लेकर आये तो हर्षित होकर श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया।
12. कुंभकरन कौन है?
उत्तरः कुंभकरन रावण का भाई है।
13. ‘दसानन’ शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
उत्तर: ‘दसानन’ शब्द रावण के लिए प्रयुक्त हुआ है।
14. कविताली में उद्धृत छंदो के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
उत्तरः कवितावली में उद्धृत छंदो के आधार पर तुलसीदास विविध विषमताओं से ग्रस्त कलिकाल की आर्थिक विषमताओं का वर्णन किया हैं। पहले छंद में उन्होंने दिखलाया है कि संसार के अच्छे बुरे समस्त लीला प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ है। और इस दारुण और गहन यथार्थ का समाधान वे राम-रूपी घनश्याम (मेघ) के कृपा-जल में देखते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया हैं सभी चाहे वह किसान, व्यापारी, भिखारी, चोर पेट के लिए ही सभी उपाय करते हैं। यहाँ तक अपनी सन्तान को भी बेंच देते हैं। दूसरे छंद में उन्होंने आर्थिक विषमता के कारण लोग किस प्रकार दुखी है, उसे व्यक्त किया है। वर्तमान समय में किसानों की खेती नहीं होती, भिखारी को भीख नहीं मिलती, बनियों का व्यापार नहीं चलता और नौकरी करनेवालो को नौकरी नहीं मिलती। जीविका से हीन लोग दुखी, शोकग्रस्त तथा विवश हैं।
15. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग सत्य हैं? तर्कसगंत उत्तर दीजिए।
उत्तरः पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है तुलसी की यह काव्य सत्य वर्तमान समय का सत्य नहीं है। क्योंकि ईश्वर ने पेट की आग बुझाने के लिए कई साधन दिये हैं। परन्तु हम उसका सही उपयोग नहीं करते। हमारे चारों और बहुत सारी प्राकृतिक सम्पदाएँ बिखरी पड़ी है। जिसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। अगर हम इन प्राकृतिक सम्पदाओं का इस्तेमाल करे तो कभी ‘पेट की आग में नहीं जलना पड़ेगा।
16. तुलसी ने यह कहने की जरुरत क्यों समझी? धूत कहाँ, अवधूत कहाँ, रजपूतू कहाँ, जोलहा कहाँ कोऊ ? काहू की बेटी सों बेटा न व्याह्य, काहू की जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न व्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?
उत्तरः वर्तमान समय के भेदभावमूलक सामाजिक-राजनीतिक माहौल में भक्ति की रचनात्मक भूमिका का संकेत मिलता है। तुलसीदास श्रीराम की भक्ति में इतने लीन है, कि उन्हें लोक क्या कहेगें उसकी परवाह नहीं है। वे कहते हैं चाहे कोई मुझे पागल जानी,
जुलाहा कहें। न ही मुझे किसी की बेटी से बेटे का व्याह कहाना है, और न ही किसी के सम्पर्क में रहकर उसकी जाति ही बिगाडूंगा। वे तो केवल भगवान श्रीराम की भक्ति करना चाहते हैं।
कवि का ऐसा कहना- काहू की बेटी सॉ बेटा न ब्याहब पुरुषप्रधान समाज की स्पष्ट छवि दिखती हैं। भारतीय समाज में नारी को पुरुषों के बाद ही महत्व दिया गया हैं। अगर क तुलसीदास ऐसा न कहकर ‘बेटासों बेटी न व्याहब’ ऐसा कहते तो समाज में नारी के समान अधिकार की बात स्पष्ट दिखती।
17. धूत कहाँ…..वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत है?
उत्तर: भक्तिकाल की सगुण काव्य-धारा में रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि गोस्वामी तुलसीदास के पदों में उनके भक्त हृदय का परिचय मिलता हैं। धृत कहाँ… वाले छन्द में राम के प्रति उनकी एकनिष्टता दिख पड़ती हैं। यहीं कारण है, कि दुनिया (संसार) उनके विषय में क्या सोचती हैं, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं हैं। इस छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्त हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है। इस छर्द में सचमूच उनके स्वाभिमानी भक्त हृदय झलक मिलती हैं।
व्याख्या कीजिए
1. किसबी……..आगि पटकी।।
उत्तरः शब्दार्थ: किसबी (कसब) – धंधा, बनिक व्यापारी, चपल नट चंचल नट, चेटकी बाज़ीगर
भावार्थ: इस छंद में कवि ने दिखलाया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला प्रपंचो का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम रूपी धनश्याम (मेघ) के कृपा-जल में देखते हैं। उहोंने राम-भक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटो का समाधान करने वाली हैं, साथ ही जीवन बाह्य मुझे आध्यात्मिक मुक्ति देनेवाली भी।
कवि कहते है, श्रमजीवी, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, सेवक, चंचल नट, चोर, और बाजीगर सब पेट ही के लिए पढ़ते, अनेक उपाय रचते, पर्वतों पर चढ़ते तथा दूत मृगया की खोज में दुर्गम वनों में विचरते हैं। सब लोग पेट ही के लिए ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म करते हैं। यहाँ तक कि अपने बेटा-बेटी तक को बेच देते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं यह पेट की आग बड़वाग्नि से भी बड़ी है, यह तो केवल एक भगवान रामरूप श्याम मेघ के द्वारा ही बुझायी जा सकती है।
2. खेती न किसान को……तुलसी हहा करी।
उत्तरः शब्दार्थ: बनिक व्यापारी, बनिज व्यापार, बेदहूँ वेद, सौकरे संकट, रावरे- आपही, दसानन रावण, दुनी दुनिया |
भावार्थ: इस छंद में प्रकृति और शासन की विषमता से उपजो बेकारी व गरीबी की पीड़ा का यथार्थपरक चित्रण करते हुए उसे दशानन (रावण) से उपमित करते हैं।
कवि कहते हैं – वे राम पर बलि जाते हैं। वर्तमान समय में किसानों की खेती नहीं होती, भिखारी को भीख नहीं मिलती, बनियों का व्यापार नहीं चलता और नौकरी करनेवालों को नौकरी नहीं मिलती। इस प्रकार जीविका से हीन होने के कारण सब लोग दुखी और शोक के वश होकर एक दूसरे से कहते हैं कि ‘कहाँ जायँ और क्या करें उन्हें कुछ नहीं सूझ नहीं पड़ता। वेद और पुराण भी कहते हैं तथा लोक में भी देखा जाता है कि संकट में तो आपही ने सब पर कृपा की है। हे दीनबन्धु दरिद्रयरुपी रावण ने दुनिया को दबा लिया है और पापरूपी ज्वाला को देखकर तुलसीदास हा-हा करते हैं। कवि अत्यन्त कातर होकर भगवान राम से सहायता के लिए प्रार्थना करता है।
3. ” धूतकहहौ… ….न दैबको दोऊ ।”
शब्दार्थ: धूत धूर्त, रजपूत राजपूत, जोलहा जुलाहा, काहू की किसी को, व्याहब – विवाह, विगार बिगाड़ना।
भावार्थ: इस छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्त हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जात-पाँत और धर्म के विभेदक दुराग्रहों के तिरस्कार का साहस पैदा होता है। इस प्रकार भक्ति की रचनात्मक भूमिका का संकेत यहाँ है, जो आज के भेदभावमूलक सामाजिक-राजनीतिक माहौल में अधिक प्रासंगिक है।
कवि कहते हैं – चाहे कोई धूर्त कहँ अथवा परमहंस कहे, राजपूत कहे या जुलाहा कहे, मुझे किसी की बेटी से तो बेटे का व्याह करना नहीं है, न मैं किसी से सम्पर्क रखकर उसकी जाति ही बिगाहूँगा। तुलसीदास तो श्रीरामचन्द्र के प्रसिद्ध गुलाम हैं, जिसको जो रुचे सो
कहो। मुझको तो माँग के खाना और देवालय (मसजिद) में सोना हैं। उन्हें न किसी से लेना है और न किसी को दो देना है। ए
4. तव प्रताप उर …….. . पुनि पवन कुमार।
शब्दार्थ: तव तुम्हारा, आपका राखि रखकर, जैहउँ जाऊँगा, अस झ तरह, आयसु आज्ञा, महुँ मैं।
भावार्थ: यहाँ कवि ने ‘रामचरित मानस’ के लंका कांड से गृहीत लक्ष्मण के शक्ि वाण लगने के प्रसंग को बहुत ही सुन्दर ढगं से प्रस्तुत किया हैं। भाइको शक्ति वाण लगने भा का पर भाई के शोकमें विगलित राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता हैं। इस घने, शोक-परिवेश में हनुमान राम से आज्ञा लेकर लक्ष्मण को सचेत करने के लिए संजीवनी बार लाने के लिए प्रस्तुत होते हैं। वे कहते हे नाथ। हे प्रभु मैं अपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत है। चला जाऊँगा। ऐसा कहकर और राम से आज्ञा पाकर साथ ही भरतजी के चरणों की वन्दना करके हनुमानजी चले जाते हैं। भरतजी के बाहुबल शील-सुन्दर स्वाभावो, गुण और प्रभु के चरणों में अपार प्रेम की मन ही मन बांरबार सराहना करते हुए मारूति श्रीहनुमानजी चले जा रहे है।
5. “उहाँ राम लछिमनहि………..हिम आतप बाता।’
शब्दार्थ: उहाँ वहाँ, मनुज अनुसारी मानवोचित, अर्थ राति- आधी रात, कषि बंदर (यहाँ ‘हनुमान’ के लिए प्रयुक्त हुआ है), आयठ आना, उर हृदय, लायऊ लगाना, काऊ किसी प्रकार, तजेहु त्याग करना, सहेहु सहना, बिपिन जंगल, हिम ठंडा, आतप धूप, बाता हवा, तूफान
भावार्थ: वहाँ लक्ष्मणजी को देखकर श्रीरामजी साधारण मनुष्यों के अनुसार (समान वचन बोले- आधी रात बीत चुकी हैं, परन्तु हनुमान नहीं आये। यह कहकर श्रीराम जी – छोटे भाई लक्ष्मणजी को उठाकर हृदय से लगा लिया और बोले हे भाई! तुम मुझे का दुखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। मेरे हित के लिए तुम माता, पिता को भी छोड़ दिया और बन में जाड़ा, गरमी और हवा सब सहन किया।
6. सो अनुराग कहाँ अब………कृपाल देखाई।।
शब्दार्थ: अनुराग प्रेम, मम मेरा, बच वचन, जनतेउँ जानता, मनतेवँ मानता, बित धन, नारि स्त्री, पत्नी, बारहिं बारा बार-बार ही, जियँ मन में, खग पक्षी, सहोदर एक ही माँ की कोख से जन्मे, जथा जैसे, दीना दरिद्र, ताता – भाई लिए संबोधन, मनि – नागमणि, फनि साँप (यहाँ मणि-सर्प) करिवर- हाथी, कर सूँड़, मम- मेरा, बिनु तोही तुम्हारे बिना, अपजस अपयश, कलंक,
पड़ेगा, छलि – क्षति, हानि, निठुर – निष्ठुर, हृदयहीन, तासु उसके, मोहि मुझे, पानी – – – हाथ, उतरुकाह, दैहउँ – क्या उत्तर दूगाँ, सोच बिमोचन – शोक दूर करने वाला, स्रवत – चूता हैं।
भावार्थ: राम अपने भाई को मूर्च्छित अवस्था में देखकर विलाप करने लगे। वे अपने – भाई को सम्बोधित करते हुए कहते हैं, कि हे भाई! वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्ण वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वन में भाई का विछोह होगा तो मैं पिता का वचन (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता। वे कहते है, जगत मे पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत् में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचारकर राम लक्ष्मण को जगाने की कोशिश करते है। जिस प्रकार बिना पंख के पक्षी, बिना मणि के सर्प और बिना सूड़ के श्रेष्ठ हाथी अत्यन्त दीन हो जाते हैं। श्रीरामचन्द्रजी कहते है – हे भाई! यदि कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे तो के तुम्हारे बिना मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा।
श्रीरामचन्द्र मन में विचार करते है स्त्री के लिए प्यारे भाई को खोकर वे कौन सा मुहँ लेकर अवध जाऐगे। वे कहते हैं- मैं जगत में बदनामी भले ही सह लेता (कि राम में कुछ भी वीरता नहीं है) जो स्त्री को खो बैठे। वे सोचते है स्त्री की हानि से (इस हानि को देखते) कोई विशेष क्षति नहीं थी। वे कहते है अब तो हे पुत्र ! मेरा निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणधार हो। सब प्रकार से सुख देनेवाले और परम हितकारी जानकर उन्होंने तुम्हें हाथ पकड़कर मुझे सौपा था। मैं अब जाकर उन्हें क्या उत्तर दूँगा ? हे भाई! तुम ) उठकर मुझे सिखाते (समझाते) क्यों नहीं ? आज स्वंय सबको सोच से मुक्ति दिलाने वाले बहु बिध सोच में डुबे हुए है। उनके कमल की पँखुड़ी के समान नेत्रो से (विषाद के भी आसँओ का) जल बह रहा है। श्रीरामचन्द्रजी की इस अवस्था को देख शिवजी कहते है – हे उमा! श्रीरघुनाथजी एक (अद्वितीय) और अखण्ड (वियोगरहित) है।
भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने आज लीला करके मनुष्य की दशा दिखलायी है।
7. प्रभु प्रलाप सुनि……मँह बीर रस।।
शब्दार्थ: प्रलाप – तर्क हीन वचन-प्रवाह, निकर-समूह भावार्थ :- प्रभु श्रीराम (लीला के लिए किये गये) प्रलाप को कानों से सुनकर वानरों : के के समुह व्याकुल हो गये। इतने में ही हनुमानजी आ गये, जैसे करुणारयस (के प्रसंग) वीररस (का प्रसंग) आ गया हो।
8. हरषि राम भेटेउ हनुमाना……. सब रनधीरा॥
शब्दार्थ: हरषि – प्रसन्न होकर, भेटेउ भेंट की, मिले, कृतग्य कृतज्ञ, सुजाना अच्छा ज्ञानी, समझदार, कीन्हि किया, हरषाई हर्षित, हृदयँ – हृदय में, ब्राता – समूह, झुंड, लइ आया- ले आए, सिर धुनेऊ – सिर धुनने लगा, पहिं – (के) पास, निसिचर – रात में चलने वाला, हरि आनी हरण कर लाए, जोधा योद्धा, संघारे मार डाले, दुर्मख कड़वी जबान ।
भावार्थ: श्रीराम हर्षित होकर हनुमानजी से गले लगाकर मिले। प्रभु राम परम सुजान
(चतुर) और अत्यन्त ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरंत उपाय किया। जिससे लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे। प्रभु ने अपने भाई को हृदय से लगा लिया। भालू और वानरों के समूह सब हर्षित हो गये। फिर हनुमानजी ने वैद्य को उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया जहाँ से वे उन्हें लेकर आये थे। यह समाचार जब रावण ने सुना तब उसने अत्यन्त विषाद से बार-बार सिर पीटा। वह व्याकुल होकर कुम्भकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसने उसको जगाया। रावण के जगाने पर कुम्भकर्ण जागकर उठ बैठा। उस समय वह ऐसा लग रहा था मानो स्वयं काल ही शरीर धारण करके बैठा हो। रावण को चिन्तित अवस्था में देख कुम्भवर्ण ने पूछा है भाई! कहो तो, तुम्हारे मुख सूख क्यों रहे हैं? तब ने अभिमानी रावण ने उससे सीता को हरने से लेकर अब तक की सारी कथा कही। फिर कहा हो तात! वानरों ने सब राक्षण मार डाले। यहीं नहीं बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला। दुर्मुख, देवशत्रु (देवान्तक) मनुष्य भक्षक (नरान्तक), भारी योद्धा, अतिकाय और अकम्पन तथा महोदर आदि दूसरे सभी रणधीर वीर रणभूमि में मारे गये।
9. दोहा
“सुनि दसंकधर…. चाहत कल्यान ।”
शब्दार्थ: दसकंधर दशानन, रावण, अपर दूसरा, भट योद्धा, सठ- दुष्ट, रनधीरा- युद्ध में अविचल रहने वाला।
भावार्थ: रावण के वचन सुनकर कुम्भकर्ण विलखकर (दुखी होकर) बोला- अरे मूर्ख। जगज्जननी जानकी को हर लाकर अब तू कल्याण चाहता है।
10. मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु विपिन हिम’ आतप बाता। जौ जनतेउँ बन बंधु बिछोहू । पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तुक “आरोह” के ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ से ली गई हैं। इसके कवि है, रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ।
संदर्भ: लक्ष्मण के मूर्च्छित होने के पश्चात् भ्राता राम अपने भाई को देखकर विलाप करते हैं।
व्याख्या: वाण लगने पर लक्ष्मण मूर्च्छित हो जाते हैं। अपने भाई को मूर्च्छित अवस्था में देखकर राम विलाप करने लगते हैं। वे बीती बातों को स्मरण करते हैं। वे मूर्च्छित लक्ष्मण से कहते हैं, कि लक्ष्मण का स्वभाव सदा से ही कोमल था। राम के प्रति इतना प्रेम, सम्मान था कि उनके लिए माता-पिता, स्त्री को भी छोड़ दिया। वन में जाड़ा गरमी और हवा सब सहन किया। राम पाश्याताप करते हुए कहते हैं, कि अगर वे जानते कि वन में भाई का विछोह होगा तो मैं पिता का वचन (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता।
11. जथा पंख बिनु खग अति हीना। मनि बिनु कनि करिबर कर हीना। अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौ जड़ दैव जिआवै मोही ।।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक “आरोह” के लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप ” से लीया गया है। इसके कवि राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।
सदंर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में श्रीराम का भाई लक्ष्मण के प्रति जो प्रेम हैं, उसका वर्णन हैं।
व्याख्या: मूर्च्छित लक्ष्मण को देखकर राम विलाप करने लगते है। वे लक्ष्मण को चेतना में लाने का हर संम्भव प्रयास करते हैं। वे कहते हैं लक्ष्मण के बिना उनका जीवन बिल्कुल ही निस्सार हैं। जिस प्रकार बिना पंख के पक्षी, बिना मणि के सर्प और बिना सूड़ के श्रेष्ठ हाथी अत्यन्य दीन हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार लक्ष्मण बिना श्रीराम का जीवन भी अत्यन्त दीन, मूल्यहीन हैं।
विशेष: १) ” करिबर कर” यहाँ अनुप्रास अंलकार हैं। (‘क’ वर्ण की आवृति एक से अधिक बार हुआ है)
12. माँगि के खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को एकु न दैबको दोऊ ।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के ‘कवितावली’ से ली गई है। इसके कवि रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।
संदर्भ: यहाँ भक्ति की गहनता और सहानता में उपजें भक्त हृदय का सजीव चित्रण मिलता है।
व्याख्या: तुलसीदास का इस भेदभावमूलक सामाजिक राजनीतिक माहौल से कुछ लेना-देना नहीं हैं। उन्हें इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं हैं, कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। वे कहते हैं चाहे उन्हें कोई धूर्त, अवधूत, जुलाहा या राजपुत कहे। न ही उन्हें किसी की बेटी संग बेटा नहीं, व्याहना न हीं उन्हें किसी के सम्पर्क में रहकर उनकी जाति बिगाड़नी हैं। बल्कि तुलसीदास तो राम के प्रसिद्ध गुलाम हैं, उन्हें केवल राम की गुलामी ही करनी हैं। वे कहते हैं कि उन्हें तो मार्ग कर खाना तथा मसजिद में सोना है। उन्हें तो न किसी से एक लेना है और न ही किसी को देना हैं।
13. ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के कवितावली से ली गई हैं। इसके कवि रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि तुलसीदास जी हैं।
सदर्भ: यहाँ कवि ने अपने युग की आर्थिक विषमता का वर्णन किया हैं।
व्याख्या: कवि के अनुसार संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपचो का आधार ‘पेट की आग’ हैं। वे कहते हैं, श्रमजीवी किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, सेवक, चंचल, नट, चोर, दूत और बाजीगर सब पेट ही के लिए पढ़ते, अनेक उपाय रचते हैं। सब लोग पेट के लिए ही ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म करते हैं। यहाँ तक कि अपने बेटा-बेटी तक को बेच देते हैं। वे कहते है, कि यह पेट की आग बड़वाग्नि से भी बड़ी हैं।
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