AHSEC Class 12 Hindi (Mil) Notes
☆CHAPTER: 12☆
काले मेघा पानी दे
Chapter – 12
काव्य खंड
लेखकर परिचय: स्वातन्त्र्योतर प्रमुख हिन्दी साहित्यकार धर्मवीर भारती का जन्म २ दिसम्बर सन् १९२६ ई. में इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में हुआ। धर्मवीर भारती जी के पिता चिरंजीवलाल तथा माता का नाम श्रीमती चदीदेवी थी। बचपन में ही पिता की असामयिक मृत्यु के कारण इन्हें अनेक कष्ट झेलने पड़े। माता के आर्य समाजी होने के कारण इन पर तर्कशीलता और मर्यादावादी जीवन का प्रभाव रहा। धर्मवीर भारती जी की शिक्षा इलाहाबाद में हुई। स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण इनकी पढ़ाई एक साल के लिए रूक गई। धर्मवीर भारती जी सन् १९४५ में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा सर्वाधिक अंक प्राप्तकर कीर्तिमान स्थापित किया। सन् १९८७ में इन्होंने एम. ए. (हिन्दी) की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उर्तीण की। सन् १९८४ में डा. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध- साहित्य पर पी० एच डी की उपाधि प्राप्त की। गुनाहों का देवता उपन्यास से लोकप्रिय धर्मवीर भारती का आजादी के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, निबन्ध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज हिन्दी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। इनकी मृत्यु १९९७ में हुई।
प्रमुख रचनाएँ:
कविता संग्रह: कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठंडा लोहा।
कहानी संग्रह: बंद गली का आखिरी मकान।
उपन्यास: गुनाहो का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा।
गीतिनाट्य: अंधा युग ।
निबन्ध संग्रह: पश्यंती, कहनी – मानव मूल्य और साहित्य, ठेले पर हिमालय।
काले मेघा पानी दे एक संस्मरण हैं। इसमें लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुन्दर चित्रण हैं। लेखक ने अपने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि दूर करने के लिए गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगते चलती है। बच्चों की इस टोली को लोग दो नामों से पुकारते थे इदंर सेना या मेढ़क मडंली। जो | लोग बच्चों की इस टोली के शोर-शराबे और उनके उछलकूद और उनके कारण गलियों में होनेवाले कीचड़ से चिढ़ते थे, वे लोग उसे मेढ़क मण्डली कहते थे। इस मंडली में दस-बारह से सोलह-अठारह बरस के लड़के थे। ये बच्चे सिर्फ एक जाघियाँ या लंगोटी। में निकलते थे। एक जगह इकट्ठा होते है, फिर जयकार लगाते हुए गलियों में निकलते थे। उनकी जयकार सुनते ही स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे या बारजे से झाँकने लगती थी। | ये बच्चे उछलते कूदते काले मेघा पानी दे, गगरी फूटी बैल पियासा पानी दे, गुड़धानी दे, काले मेघा पानी दें गाते हुए दुमहले मकान के सामने रूक जाते और कहते पानी दे, इंदर सेना आई है। आषाढ़ के दिनों में घरो में पानी कम होने पर भी सहेजकर रखे हुए पानी में बाल्टी भर या घड़ा भर कर पानी इन बच्चों पर गिरा दिया जाता था।
ये भीगे बदन पानी में लोट लगाते और कीचड़ से लथपथ हो जाते थे। फिर, ये कीचड़ सारे बदन में लगाते हुए अगले घर की और चल देते थे। ये सेना जेठ आषाढ़ के महिनों में निकलते थे क्योंकि इन महिनों में गरमी के कारण लोग त्राहि मान कर रहे होते हैं। कुएँ सूखने लगते हैं, नलों में पानी कम आता है, आता भी आधी रात को मानो खौलता हुआ पानी। शहरो की तुलना में गाँवो का हालत बहुत ही खराब था खे की जमीन सूखकर पत्थर हो जाते हैं। जानवर भी गरमी से मरने लगते थे। इस गरमी से छुटकारा पाने के लिए जब सारे पूजा पाठ व्यर्थ हो जाते थे, तब यह इन्दर सेना निकलती थी। वर्षा के बादलो के स्वामी इन्द्र है, और ये इन्द्रर सेना मेघो को पुकारते हुए पानी की आशा लेकर चलते हैं। लेकिन लेखक को पानी की तंगी के दिनों में इस तरह पानी फेंकना पानी की बरबादी लगती हैं। लेखक कहते हैं इन अन्धविश्वास से पानी को क्षति होती हैं। उनके अनुसार यह पाखण्ड हैं। लेखक कहते हैं, इन अंधविश्वास के कारण ही हम अंग्रेजो से पिछड़ गये उनके गुलाम बन गये।
लेखक की उम्र मेढ़क मण्डली वालो जैसी थी परन्तु, बचपन से ही आर्यसमाजी संस्कार होने के कारण कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री बना दिया गया था। यह सभा लोगों को अंधविश्वास से दूर करने का प्रयास करती थी। लेखक की एक जीजी थी, जिनसे उन्हें बचपन में सबसे ज्यादा प्यार मिला। जीजी रिश्ते में कोरे नहीं थी उनकी उम्र माँ से ज्यादा था। जीजी का अपना परिवार था परन्तु उनकी जान लेखक में बसती थे। जीजी रीति रिवाजों, तीज त्योहारों आदि जिन्हें लेखक अन्धविश्वास समझते थे, खान थी। जीजी का कोई अनुष्ठान लेखक के बिना पुरा नहीं, होता ता कभी दिवाली में गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाते तो जन्माष्टमी में आठ दिन की झाँकी को सजाने | तथा पंजीरी बाँटने में लगे रहते तो छठ में छोटी रंगीन कुल्हियों में भूजा भरते। जीजी यह सारे लेखक से इसलिए कराती ताकि सारा पुण्य उन्हें मिले।
एक बार लेखक ने इस अंधविश्वास का प्रतिवाद किया। जीजी जब बाल्टी भर पानी इद्रर सेना पर डालने ले गयी तब भी लेखक मुँह फुलाये अलग खड़े थे। लेखक को मनाने के लिए लडू- मठरी खाने को दिया फिर भी नहीं माने। पहले तो जीजी क्रोधित हो गयी परन्तु बाद में लेखक का सर अपनी गोद में लेकर उन्हें मनाने लगी। जीजी समझाती हैं, | यह सब अंधविश्वास नहीं है। क्योंकि मनुष्य जो चीज पाना चाहता हैं, उसे पहले नहीं देगा तो पाएगा कैसे। इसलिए पानी पाने के लिए पानी का अर्ध्य चढ़ाना चाहिए। ऋषि मुनियों ने इसलिए दान को ऊँचा स्थान दिया हैं।
जब लेखक कहते है पानी के तंगी के दिनों में पानी को बहाना गलत हैं। तब जीजी कहती हैं, दान के लिए त्याग जरूरी हैं। दान उसे नहीं कहते हैं, जब लाखों-करोड़ो मेंरूपयों में एक दो रुपये किसी को दे दिया जाए बल्कि दान तब होता हैं, जब अपनी नते जरूरतों को पीछे रखकर दुसरो के कल्याण के लिए दिया जाता हैं। परन्तु लेखक अपनी ही जिद पर अड़े रहे।
जीजी लेखक को समझाती हुई कहती हैं, कि जिस प्रकार किसान भी फसल पाने के लिए पहले पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ लेकर जमीन की क्यारियाँ बनाकर फेंक देता हैं, जिसे बुवाई कहते हैं। इन्दर सेना पर पानी देना भी एक प्रकार की बुवाई हैं। जब हम बीज के रूप में पानी देगें तब काले मेघा फसल के रूप में पानी देगें। ऋषि मुनि भी यहीं कह गए हैं, कि पहले खुद दो तो ईश्वर तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटा देगें। गाँधीजी भी यया प्रजा तथा राजा की बात कह गये हैं।
लेखक को स्मरण होता हैं, कि यह बातें पचास बरस से ज्यादा होने को आए परन्तु आज़ भी यादें ताजा हैं। आज हर क्षेत्र में मौगे तो बड़ी-बड़ी हैं, परन्तु त्याग कहीं नहीं है। हम भ्रष्टाचार की बाते करते हैं, परन्तु हमने यह नहीं जाँचा की हम अपने स्तर पर कहीं भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं। लेखक प्रश्न करते हैं, आखिर यह स्थिति कब बदलेगी।
प्रश्नोत्तर
1. लोगों ने लड़कों की टोली को मेढ़क मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इन्दर सेना कहकर क्यों बुलाती थी?
उत्तरः इस टोली के लड़कों के नग्नस्वरुप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होनेवाले कीचड़ काँदो से चिढ़ने वाले लोग इस टोली को मेढ़क मंडलो नाम से पुकारते थे। मेढ़क की भाँति ही यह टोली एक घर से दूसरे घर जाते हैं।
यह टोली अपने आपको इन्द्रर सेना कहकर इसलिए बुलाती थी क्योंकि बादलों के स्वामी इन्द्र हैं। और ये कीचड़ में लथपथ होकर इन्द्र देवता से पानी की माँग करते थे। ये मेघों की पुकारते हुए प्यासे गलों तथा सूखे खेतों के लिए पानी माँगते ।
2. जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर: जीजी का मानना है जो चीज मनुष्य पाना चाहता है, उसे पाने के लिए पहले देना पड़ता है। जीजी कहती हैं, जब तक हम इन्द्र भगवान को जल का अर्ध्य नहीं चढ़ायेगें तब तक वे हमें पानी नहीं देंगे। जब हम कुछ दान करेगें तो देवता चौगुना-अठगुना करके हमें लौटायेगें। किसी वस्तु को पाने के लिए दान देना आवश्यक हैं। परन्तु इस दान में त्याग की भावना जरूरी है। किसान जिस प्रकार फसल पाने के लिए पहले अपनी तरफ से पाँच-छह सेर अच्छा गेहूं लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देते हैं। अतः पानी पाने के लिए इन्दर सेना पर पानी फेंके जाना जीजी को सही लगता है।
3. पानी दे, गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही हैं?
उत्तरः पानी मनुष्य के जीवन में अहम् भूमिका निभाता हैं। खेती और बहुकाज प्रयोग के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। पानी के साथ लोग गुड़धानी को भी माँग करते हैं। गुड़धानी गुड़ और चने से बना एक प्रकार का लड्डू हैं। यहाँ गुड़धानी शब्द का प्रयोग कर आनन्द और खुशियों की माँग की गई है। और ये खुशियाँ और आनन्द तभी आऐगी जब इन्द्र भगवान पानी देगें।
4. गगरी फूटी बेल पियासा इंदर सेना के इस खेल गीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई हैं?
उत्तर: इदंर सेना ने अपने खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात मुखरीत को हैं। चैल जो किसान के लिए बहुत ही अहमियत रखते हैं। अच्छी फसल उपजाने में बैलों का योगदान होता हैं। वलों के द्वारा ही किसान खेतों को जोतता है। जिसमें बीज डाला जाता है, जिससे अनाज उपजाया जाता हैं। किसान केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि संसार के लिए अनाज पैदा करता है। अगर बैल को पीने के लिए पानी नहीं मिला तो वह नहीं बच पायेगा।
5. इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती हैं। नदियों का भारतीय सामाजिक, संस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व है?
उत्तर: गंगा को नदियों में श्रेष्ठ तथा पवित्र माना जाता हैं। अत: इंदर सेना एक अच्छे काम की शुरुआत गंगा मैया की जयकार के साथ करते हैं।
भारतीय समाज और संस्कृति में नदियों को बहुत महत्व दिया गया है। भारतीय किसी भी धार्मिक अनुष्ठान जैसे पूजा-पाठ आदि मंदिरों में छिड़काव के लिए गंगा के शुद्ध जल का प्रयोग करते हैं। गंगा के जल को पावन समझा जाता है। उसे माता का स्थान दिया गया हैं। अत: गंगा मैया कहकर सम्बोधित किया जाता है। भारत में नदियों की पूजा भी की जाती हैं। यहाँ तक हिन्दु समाज में मृत्यु के पश्चात् अस्थियाँ नदी में विसर्जीत कर दी जाती हैं।
6. रिश्तो में हमारी भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमज़ोर करती हैं। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।
उत्तर: बचपन से ही आर्य समाजी संस्कार होने के कारण लेखक अर्धविश्वासों का विरोध करते थे। यही नहीं लोगों के बीच जो अंधविश्वास हैं, वह भी दूर करने का प्रयत्न करते थे। (लेखक को पानी की कमी होने के पश्चात् भी इन्दर सेना पर पानी फेंका जाना अंधविश्वास लगता था।) अंधविश्वासो का विरोध करने वाले लेखक जीजी के सामने कुछ हद तक विवश से लगते हैं, क्योंकि जीजी उनसे ऐसे कार्य करवाती थी जो लेखक को अंधविश्वास लगता है, जैसे गोबर और कोड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाना, छठ में रंगीन कुल्हियों में भूजा भरना। लेखक को पानी प्राप्त करने के लिए इन्दर सेना पर पानी फेफना अंधविश्वास लगता है। पानी की तंगी के दिनों में इस तरह पानी बहाना पानी की निर्मम बरबादी लगती है। परन्तु जीजी का इन रीति-रिवाजों के प्रति इतना विश्वास था, कि लेखक भी उन्हें समझा नहीं पाते थे और इस तरह रिश्तों में भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की यह खोजती लेखक की बुद्धि शक्ति कमजोर हो जाती हैं।
7. ‘काले मेघा पानी दे’ किस प्रकार की विद्या है?
उत्तरः यह धर्मवीर भारती द्वारा लिखा गया संस्मरण हैं।
8. ‘काले मेघा पानी दे’ के लेखक कौन है?
उत्तर: इसके लेखक धर्मवीर भारती जी हैं।
9. धर्मवीर भारती जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: धर्मवीर भारती जी का जन्म सन् १९२६ ई० इलाहाबाद उत्तर प्रेदश में हुआ था।
10. धर्मवीर भारती द्वारा रचित किस उपन्यास पर फिल्म भी बन चुकी है?
उत्तर: भारती जी द्वारा रचित “सूरज का सातवाँ घोड़ा” पर फिल्म बन चुकी हैं।
11. धर्मवीर भारती द्वारा रचित किसी एक कहानी संग्रह का नाम बताए।
उत्तर: बंद गली का अखिरी मकान।
12. धर्मवीर भारती जी मृत्यु कब हुई थी?
उत्तरः भारती जी मृत्यु सन् १९९७ ई० में हुई।
13. बच्चों की टोली को किन दो नामों से जाना जाता था?
उत्तर: बच्चों की टोली को दो नामों से जाना जाता था इंदर सेना और मेढ़क मण्डली।
14. इंदर सेना नाम क्यों पड़ा?
उत्तरः वर्षा के बादलों के स्वामी इन्द्र को माना जाता है और बच्चों की यह टोली मेघों को पुकारते हुए इंद्र देवता से पानी माँगते हैं। अतः इस टोली को इंदर टोली कहा जाता है।
15. कुछ लोग बच्चों की टोली को मेढ़क मंडली क्यों कहते थे?
उत्तरः जो लोग इन बच्चों के नग्नशरीर, उछलकुद, शोर-शराबे और उनके कारण उत्पन्न कीचड़ से चिढ़ते थे, वे मेढ़क मंडली कहकर बुलाते थे।
16. इंदर सेना पर लोग पानी क्यों फेकते थे?
उत्तर: लोगो का मानना था इस प्रकार पानी फेंकने पर इन्द्र देवता प्रसन्न होकर बारि कर देंगे।
17. वर्षा के बादलों के स्वामी कौन है?
उत्तरः वर्षा के बादलों के स्वामी इन्द्र भगवान है।
व्याख्या कीजिए
1. त्याग तो वह होता है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम हैं, जिसकी तुझको भी जरूरत है तो अपनी जरूरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता है, दान तो वह होता हैं, उसी का फल मिलता है।
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘ आरोह’ के गद्य खण्ड के “काले मेघा पानी दे” नामक संस्मरण से लिया गया है। इसके लेखक हैं, धर्मवीर भारतीजी। प्रस्तुत पंक्तियाँ जीजी द्वारा कही गयी हैं। इसमें जीजी ने त्याग की महिमा का गुणगान किया है।
लेखक को इंदर सेना पर पानी फेंका जाना पानी की बरबादी लगता हैं। वह जीजी को ऐसा करने से रोकते हैं। परन्तु जीजी इसे दान देना बताती हैं, साथ ही यह भी कहती है, दानु में त्याग की भावना का होना नितान्त आवश्यक है। जीजी के अनुसार त्याग उसे नही कहते जब आपके पास बहुत पैसे है, और उसमे से एक दो रूपये आपने किसी और को दे दिये है। बल्कि त्याग वह होता है, जो चीज़ तेरे पास हो तो बहुत कम जिसकी जरुरत भी है। परन्तु अपनी जरुरत को पीछे रखकर उसे किसी दूसरे कल्याण के लिए त्याग दिया जाए। सही अर्थ में वही दान हैं, और उसी का फल भी मिलता है।
2. काले मेघा के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती हैं, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के “काले मेघा पानी दे” नामक संस्मरण से लिया गया है। इसके लेखक हैं, धर्मवीर भारती जी।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने राजनेतिक विसंगतियों की ओर संकेत किया है। लेखक कहते हैं, वर्तमान समय में हर क्षेत्र में मनुष्य की माँगे बड़ी-बड़ी हो गयी है। = कारण. परन्तु पहले जैसे त्याग की भावना का कही नामों निशान नहीं है। आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है, कि स्वार्थपुर्ति ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो गया है। हम सदैव दूसरी के भ्रष्टाचार की बातें बहुत ही चटखारे के साथ करते है, परन्तु हमने कभी खुद को नहीं जाँचा कि हम अपने दायरे में भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन गये। आज भ्रष्टाचार के कारण बहुत सारी बार सुविधाएँ आम आदमी तक पहुँच ही नहीं पाते। वे उससे वंचित रह जाते है। लेखक का मोहभंग हो चुका हैं, वे ऊब गये है। वह चाहते हैं, कि यह असंगातियों जल्द ही ठीक हो गाए। देश की राजनीतिक स्थिती सुधर जाए।
-000-